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Tuesday, 3 October 2017

हिमालय के पास बचे बस 18 साल

 ग्लेशियरों के पिघलने की यही रफ्तार जारी रही तो वह दिन दूर नहीं जब 21वीं सदी के आखिर तक एशिया और 2035 तक हिमालय के भी ग्लेशियर गायब हो जाएंगे।



आज दुनिया के ग्लेश्यिरों पर संकट मंडरा रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण है ग्लोबल वार्मिंग, जिसके चलते बढ़ रहे तापमान का बुरा असर ग्लेशियरों पर पड़ रहा है। परिणामस्वरूप वे पिघल रहे हैं। उनके पिघलने की यदि यही रफ्तार जारी रही तो वह दिन दूर नहीं जब 21वीं सदी के आखिर तक एशिया और 2035 तक हिमालय के ग्लेशियर गायब हो जाएंगे। उनका नाम केवल किताबों में ही शेष रह जाएगा। यह ग्लोबल वार्मिंग का ही असर है कि आर्कटिक में लाल बर्फ तेजी से बन रही है और उसके परिणामस्वरूप वहां ग्लेशियर पिघलने की रफ्तार और तेज हो गई है। ग्लोबल वार्मिंग के चलते हमारे उच्च हिमालयी इलाके में जहां पर एक समय केवल बर्फ गिरा करती थी वहां अब बारिश हो रही है। यह स्थिति भयावह खतरे का संकेत है। देखा जाए तो 1850 के आसपास औद्योगिक क्रांति से पहले की तुलना में धरती एक डिग्री गर्म हुई है। वैज्ञानिकों की मानें तो उनको इस बात का भय सता रहा है कि उनके द्वारा निर्धारित तापमान में बढ़ोतरी की दो डिग्री की सीमा को 2100 तक बचा पाना संभव नहीं दिख रहा है। उनका मानना है कि यदि ऐसा होता है तो एशिया में ग्लेशियरों का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।
नीदरलैंड और हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय भूभौतिकी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों के अनुसार ग्लेशियरों के पिघलने का सबसे बड़ा और अहम कारण ग्लोबल वार्मिंग है। उनके शोध के अनुसार ग्लेशियरों की बर्फ पिघलने से समुद्री जलस्तर में एक से 1.2 फीट तक की वृद्धि हो सकती है। इसका असर मुंबई, न्यूयॉर्क, लंदन और पेरिस जैसे शहरों पर पड़ेगा। यही नहीं कृत्रिम झीलों के बनने से 2013 में उत्तराखंड में आई केदारनाथ जैसी त्रासदी के खतरे भी बढ़ेंगे। जर्नल नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित एक शोध में इस बात का खुलासा हुआ है कि आर्कटिक में बन रही लाल बर्फ से ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार 20 फीसद बढ़ जाती है। 
वैज्ञानिकों के अनुसार उसमें पाए जाने वाले जीवाणु वहां की बर्फीली सतह का रंग बदल कर लाल कर दे रहे हैं। परिणामस्वरूप सूर्य की रोशनी को परावर्तित करने की उनकी क्षमता दिन-ब-दिन कम होती जा रही है। इससे लाल बर्फ में सूर्य की रोशनी और उष्मा ज्यादा अवशोषित हो रही है। इससे बर्फ के पिघलने की रफ्तार तेज हो गई है। यहां ग्लेशियरों के पिघलने का नतीजा यह होगा कि आर्कटिक की कार्बन सोखने की क्षमता प्रभावित होगी। वह दिनोंदिन कम होती चली जाएगी। यदि यही हाल रहा तो एक दिन ऐसा आएगा कि कार्बन डाईऑक्साइड अवशोषित करने की क्षमता आर्कटिक पूरी तरह खो देगा। यह कार्बन डाईऑक्साइड वातावरण में रहकर ग्लोबल वार्मिंग बढ़ाने के कारक के रूप में काम करेगी। इसका दुष्प्रभाव यह होगा कि समूचा वैश्विक कार्बन चक्र प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगा। यह समूची दुनिया के लिए खतरे की घंटी है।
जहां तक हिमालयी क्षेत्र का सवाल है तो इस सच्चाई से इन्कार नहीं किया जा सकता कि माउंट एवरेस्ट तक ग्लोबल वार्मिग के चलते पिछले पचास सालों से लगातार गर्म हो रहा है। जिससे दुनिया की 8848 मीटर ऊंची चोटी के आसपास के हिमखंड दिन-ब-दिन पिघलते जा रहे हैं। इसरो की मानें तो हिमालय पर्वत श्रृंखला में कुल 9600 ग्लेशियर हैं। इनमें से 75 फीसद के पिघलने की गति जारी है। इनमें से ज्यादातर तो झील और झरने के रूप में तब्दील हो चुके हैं। चिंता की बात यह है कि यदि इस पर अंकुश नहीं लगा तो आने वाले समय में हिमालय की यह पर्वत श्रृंखला पूरी तरह बर्फ विहीन हो जाएगी।
इसमें दो राय नहीं कि यह सब तापमान में बढ़ोतरी के चलते मौसम में आए बदलाव का ही दुष्परिणाम है, जिसके कारण ग्लेशियर लगातार सिकुड़ते चले जा रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण रिपोर्ट भी इसकी पुष्टि कर चुकी है। हालात की गंभीरता का पता इससे चल जाता है कि समूची दुनिया में वह चाहे आर्कटिक हो, आइसलैंड हो, हिमालय हो, तिब्बत हो, चीन हो, भूटान हो या नेपाल हो या फिर कहीं और, हरेक जगह ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार तेजी से बढ़ रही है।

असल में ग्लोबल वार्मिंग के कारण जिस तेजी से मौसम का मिजाज बदल रहा है, उसी तेजी से हिम रेखा भी पीछे की ओर खिसकती जा रही है। इससे जैवविविधता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। हिम रेखा के पीछे खिसकने से टिंबर लाइन यानी जहां तक पेड़ होते थे और हिम रेखा यानी जहां तक स्थाई तौर पर बर्फ जमी रहती थी, के बीच का अंतर बढ़ता जा रहा है। हिम रेखा पीछे खिसकने से खाली हुई जमीन पर वनस्पतियां उगती जा रही हैं। ये वनस्पतियां, पेड़ और झाड़ियां जिस तेजी से ऊपर की ओर बढ़ती जाएंगीं, उतनी ही तेजी से ग्लेशियरों के लिए खतरा बढ़ता चला जाएगा। नेपाल स्थित इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटिग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट ने अनुमान व्यक्त किया है कि आने वाले 33 सालों यानी 2050 तक ऐसे समूचे हिमनद पिघल जाएंगे। इससे इस इलाके में बाढ़ और फिर अकाल का खतरा बढ़ जाएगा। गौरतलब है कि हिमालय से निकलने वाली नदियों पर कुल मानवता का लगभग पांचवां हिस्सा निर्भर है। पानी का संकट और गहराएगा। कृत्रिम झीलें बनेंगी। तापमान तेजी से बढ़ेगा। बिजली परियोजनाओं पर संकट मंडराएगा और खेती पर खतरा बढ़ जाएगा।
इस बारे में वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान का मानना है कि यह ग्लोबल वार्मिंग का ही नतीजा है कि हिमालयी क्षेत्र में जहां पहले बारह महीने बर्फ गिरती थी, अब वहां बर्फ गिरने के महीनों में कमी आई है। वहां बारिश भी होने लगी है। तात्पर्य यह कि अब इस क्षेत्र में बारिश होने वाला इलाका 4000 से 4500 मीटर तक बढ़ गया है। इससे हिमालय में एक नया बारिश वाला इलाका विकसित हुआ है। तापमान में बढ़ोतरी से उपजी गर्म हवाएं जैवविविधता के लिए गंभीर खतरा बन रही हैं। ये जैव विविधता के विनाश का कारण हैं। जाहिर है अब कुछ किए बिना इस समस्या से छुटकारा संभव नहीं है। इसलिए तापमान में वृद्धि को रोकना समय की सबसे बड़ी मांग है। वैश्विक स्तर पर इस पर लगाम लगाने के प्रयास तो किए जा रहे हैं, लेकिन हमें भी कुछ करना होगा। जीवनशैली में बदलाव और भौतिक सुख-संसाधनों के अंधाधुंध प्रयोग पर अंकुश इसका बेहतर समाधान हो सकता है।

मोहाली में मिली हनीप्रीत

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हनीप्रीत इंसा की आंख-मिचौली की मियाद भी खत्म हो गई है. पंजाब की मोहाली पुलिस ने सरेंडर से पहले ही हनीप्रीत इंसा को हिरासत में लेकर हरियाणा की पंचकूला पुलिस को सौंप दिया है. इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने हनीप्रीत इंसा की अग्रिम जमानत ठुकराते हुए उसे सरेंडर करने की नसीहत दी थी. इसके बाद हनीप्रीत पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत की अर्जी लगाने या सरेंडर करने की तैयारी में थी.
हरियाणा पुलिस को हनीप्रीत के सिलसिले में अहम जानकारियां मिली हैं. पुलिस सूत्रों का कहना है कि हनीप्रीत को लेकर जानकारी मिली है कि वह चंडीगढ के आसपास है. कुछ अहम जानकारी मिली है, उस पर एक स्पेशल टीम काम कर रही है. पंचकूला के चारों तरफ नाकेबंदी कर दी गई. महिला पुलिस दुपट्टे और घूंघट हटाकर भी महिलाओं की जांच कर रही है, ताकि हनीप्रीत छिपकर निकल सके. हो सकता है कि हनीप्रीत 4 बजे तक कोर्ट में सरेंडर कर दे.
पंचकूला की सड़कों पर हरियाणा पुलिस ने हनीप्रीत को ढूंढने के लिए नाकेबंदी शुरू कर दी है. हर जगह बैरिकेटिंग लगाए गए हैं. गाड़ियों को रुकवाकर उनकी तलाश ली जा रही है. आजतक पर हनीप्रीत को देखे जाने के बाद हरियाणा पुलिस हरकत में गई है. उनका कहना है कि हनीप्रीत पंचकूला में हो सकती है. उसकी जोरों पर तलाश की जा रही है.
दिल्ली हाईकोर्ट तो हनीप्रीत को आइना दिखा चुकी है. नसीहत के तौर पर उसे वॉर्निंग दे चुकी है. लेकिन हकीकत समझने के बाद भी हनीप्रीत अबतक लापता है. दिल्ली हाईकोर्ट की नसीहत के बाद से कल तक तो छुट्टियों की वजह से कोर्ट बंद था. लेकिन हनीप्रीत आज क्या करेगी. हनीप्रीत आज पंचकूला कोर्ट या फिर हरियाणा हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत की गुहार लगा सकती है.
देशद्रोह की आरोपी हनीप्रीत ने अपने बचाव के लिए एक दांव दिल्ली में चला था. दिल्ली से कोई ताल्लुक ना होने के बावजूद 26 सितंबर को हनीप्रीत ने दिल्ली हाईकोर्ट में ट्रांजिट अग्रिम जमानत की अर्जी लगाई थी. हरियाणा में अपनी जान को खतरा बताते हुए वकील के जरिए ये दांव चला था. लेकिन कानून की आंखों में धूल नहीं झोंक सकी. जस्टिस संगीता ढींगड़ा ने अर्जी खारिज कर दी.
बेल पिटीशन दिल्ली में इसलिए दायर की गई क्योंकि पिटीशनर पंचकूला कोर्ट में चल रही प्रॉसेस को डिले करना चाहती है. वो खुद के लिए वक्त चाह रही है. लेकिन यहां से उसे राहत मिलने वाली नहीं. वो हरियाणा की परमानेंट रेजीडेंट है, वहीं जाएं. उसके लिए सबसे अच्छा तो यही है कि वो सरेंडर कर दे. इसके बाद हनीप्रीत के सामने तस्वीर साफ हो चुकी थी. लेकिन फिर दशहरा और मुहर्रम की छुट्टियां हो गईं थी.

Wednesday, 9 November 2016

RBI hasn't announced a Rs 2,000 note with a 'nano GPS chip' that it can track

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Prime Minister Narendra Modi may have surprised India after he announced on Tuesday that Rs 500 and Rs 1,000 notes would no longer be legal tender, but one part of the new system didn't come completely out of the blue. For a few days now, pictures of new Rs 2,000 notes have been floating around the internet and Modi announced that these will be issued for limited circulation soon. But those pictures also came with some rather fantastical rumours about these notes.
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According to these rumours which were circulating on WhatsApp even before the demonetisation announcement, the new notes would come with what is variously described as a "micro nano GPS chip", which is supposed to be able to help track individual notes by way of satellite.
The technology even has its own serious-sounding abbreviation, NGC, and the rumours – some of which made their way to the mainstream media, like this Zee News post – "the chip has been fitted in such a way that it can detect Rs 2000 notes even from 120 meters below the ground."
That would be astounding, if it were true. Except it isn't. On Wednesday, the RBI dismissed the rumours entirely saying that such technology does not exist anywhere in the world.
According to the rumours, the technology would have meant that piles of cash would be detectable from space, making life much easier for police forces (and anti-corruption crusaders). And it's not impossible, even if it may sound so. American engineers have developed ways to embed radio frequency identification chips on paper in ways that could aid tracking.
Finance Secretary Ashok Lavasa said that the new notes that will be introduced will be "high security", suggesting, as is routine, that new currency paper comes with added security features that make them harder to counterfeit. But he did not mention any tracking features.
When the Reserve Bank of India officially announced all the details about the new Rs 2,000 notes, however, there was no mention of any NGC.
There are a few interesting elements to the new note. Besides the colour, it will include a picture of Mangalyaan, the Indian spacecraft that made it all the way to Mars. Details about the currency does not include any mention of new security or tracking features, which presumably the RBI would want to advertise if they had implemented such technology.
Rumours might always insist that the government may not be telling us about the new technology – all the better to detect illicit cash piles once the notes are in circulation – but it seems unlikely that such information would be kept hidden, or that people would not discover the chips soon after they are out in the economy.
And even though the technology appears to be possible, barring fantastical notions of satellites being able to track piles of cash deep into the ground, it also might not yet be affordable enough to actually put on currency, even high-denomination notes.

Tuesday, 30 August 2016

16-Year-Old Indian Origin Boy Finds a Way to Make a Deadly Form of Breast Cancer More Treatable

Krtin Nithiyandam, a 16-year-old boy of Indian origin in the UK, claims to have found a way to make a lethal form of breast cancer more treatable. It is called the triple negative breast cancer and it is considered deadly because it does not respond to drugs. It is a kind breast cancer that shows aggressive tumour behaviour and poor prognosis. Usually, hormones like oestrogen and progesterone drive many forms of breast cancer. They get attached to the hormone receptors in the cancer cells and contribute to their growth. These receptors are basically proteins found in and on breast cells and they receive messages from hormones telling the cells to grow. When drugs such as tamoxifen are used during treatment, they block those hormones and inhibit growth of the disease. But such drugs are ineffective on triple negative breast cancer because these cancer cells don't have any receptors. An exhausting combination of surgery, radiation and chemotherapy is required to eliminate this kind of cancer, which in turn reduce the chances of survival.

Krtin, who moved to Surrey from India with his parents, thinks that he might have found a way of making the cancer respond to drugs.

Krtin 2
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Triple negative cancer manifests in two forms, based on which some women respond to medicines while others don't. One is the differentiated form, which produces healthy cells that are not very aggressive and grow and multiply slowly. The undifferentiated form makes the cells revert to a primitive form to never become recognisable breast tissue. They spread quickly and lead to tumour. "The prognosis for women with undifferentiated cancer isn't very good so the goal is to turn the cancer back to a state where it can be treated. The ID4 (Inhibitor Of DNA Binding 4) protein actually stops undifferentiated stem cell cancers from differentiating so you have to block ID4 to allow the cancer to differentiate," Krtin told The Telegraph, adding that he has  found a way to silence the genes that produce ID4. He also discovered that chemotherapy is more effective when the activity of a tumour suppressor called Phosphatase and tensin homolog (PTEN) is increased. And that a combination of these treatments could be more successful than the traditional cure, which uses several drugs. This therapy treatment idea was shortlisted for The Big Bang Fair programme that recognises various young scientists across the UK for their ground-breaking research. This is not the first time that Krtin is receiving international recognition for his research in the field of medical science. Last year, he won a grand prize at the Google Science Fair for his test that might spot Alzheimer’s 10 years before it is diagnosed. 
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