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Tuesday 4 August 2015

स्वप्न स्वप्न स्वप्न, सपनो के बिना भी कोई जीवन है

ज़िन्दगी यूँ ही बसर होती रहे ...

ज़िंदगी उनकी नजर होती रहे
खूबसूरत ये डगर होती रहे

सादगी इतनी है तेरे रूप में
बंदगी आठों पहर होती रहे

मैं उठूं तो हो मेरे पहलू में तू
रोज़ ही ऐसी सहर होती रहे

डूबना मंज़ूर है इस शर्त पे
प्यार की बारिश अगर होती रहे

तेज़ तीखी धूप लेता हूँ मगर
छाँव पेड़ों की उधर होती रहे

मुद्दतों के बाद तू है रूबरू
गुफ्तगू ये रात भर होती रहे

माँ का साया हो सदा सर पर मेरे
ज़िन्दगी यूँ ही बसर होती रहे

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